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पैसे के पीछे ज्यादा न भागने की सलाह देकर गुदगुदा गया नाटक ‘ कंजूस ‘

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आकांक्षा नाट्य समारोह 

लखनऊ, 30 मार्च 2024। रंगमंच के क्षेत्र में अग्रणी नाट्य संस्था आकांक्षा थियेटर आर्टस के तत्वावधान में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय, संस्कृति विभाग नई दिल्ली के सहयोग से वाल्मीकि रंगशाला उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी गोमती नगर, लखनऊ में चल रहे त्रि-दिवसीय आकांक्षा नाट्य समारोह की अंतिम समापन संध्या में मौलियर के मूल नाटक का हजरत आवारा के नाट्य रूपान्तरण एवं प्रभात कुमार बोस के निर्देशन में नाटक ‘ कंजूस ‘ का मंचन किया गया।

आकांक्षा नाट्य समारोह की अंतिम समापन संध्या का शुभारंभ मुख्य अतिथि सुधीर शर्मा डीवाईएसपी और बी.एन.ओझा ने दीप प्रज्जवलित कर किया। हास्य-परिहास्य की चाशनी से परिपूर्ण नाटक ‘ कंजूस ‘ ने अधिक लालच न करने की सलाह देते हुए जहां एक ओर पैसे के पीछे ज्यादा न भागने के लिए प्रेरित किया वहीं दूसरी ओर पैसों को जरूरत के हिसाब से कमाने व रखने का संदेश देकर दर्शकों को ठहाके लगाने पर मजबूर किया।

नाटक ‘ कंजूस ‘ के सारानुसार मिर्ज़ा सखावत बेग जो कि विदुर है, अपने बेटे फर्रूख तथा बेटी अज़रा के साथ एक घर में रहते हैं। मिर्ज़ा के घर में इन तीनों के अतिरिक्त घरेलू नौकर नासिर, कोचवान व बवर्ची अल्फू के साथ नम्बू नौकरी करते हैं। नासिर मिर्जा़ की बेटी अज़रा से बेपनाह मोहब्बत करते हैं तथा मिर्ज़ा का बेटा फरूख मरियम नाम की लड़की को चाहता है। मिर्ज़ा स्वभाव से बहुत ही कन्जूस होने के साथ-साथ शक्की मिज़ाज का है। अपने ही घर के बगीचे की जमीन में दस हजार अशर्फियां दबाकर महफूज़ रखता है। मिर्ज़ा को हमेशा इस बात का शक होता है कि उसके घर के नौकर कहीं उसकी रकम चुरा न ले। इधर फर्रूख और अज़रा अपने-अपने मोहब्बत की दास्तान सुनाकर शादी की योजना बनाते हैं। इसी बीच मिर्ज़ा वहाँ पहुँचकर अपनी शादी के बारे में फर्रूख और अज़रा से राय पूछता है। लेकिन जब फर्रूख मियां को यह पता चलता है कि मिर्ज़ा फर्रूख की प्रेमिका मरियम से खुद ही निकाह करना चाहता है तो फर्रूख मियां के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। अन्ततः बाप-बेटे में एक लम्बी नोंक-झोंक के बीच मिर्ज़ा को यह पता चलता है कि उसकी अशर्फियां चोरी हो गई है। विषम परिस्थितियों से गुजरता हुआ यह नाटक वहां पर एक नया मोड़ लेता है जहां असलम साहब का प्रवेश होता है। असलम के आने पर कई राज अपने-आप खुल जाते हैं कि नासिर और मरियम दोनों असलम साहब के खोये हुए बेटे-बेटी हैं जो एक समुन्दरी तूफान में बिछड़ जाते हैं। आखिर में तीनों की शादियां हो जाती है और सारा खर्च असलम साहब खुद करते हैं। यहीं पर इस नाटक का समापन हो जता है।

सशक्त कथानक से परिपूर्ण नाटक ‘ कंजूस ‘ में अशोक लाल, मोहित यादव, अनमोल सिंह, शगुन सिंह, सौरभ सिंह, जारा हयात बुशरा फातिमा, अरुण कुमार विश्वकर्मा, तारिक इकबाल, आनन्द प्रकाश शर्मा, अचला बोस, शशांक तिवारी और कोमल प्रजापति ने अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को देर तक अपने आकर्षण के जाल में बांधे रखा। नाटक के पार्श्व पक्ष में प्रकाश – गिरीश अभीष्ट , संगीत – श्रद्धा बोस, रूप सज्जा – विश्वाश वैश्य और मंच परिकल्पना व सेट निर्माण में अशोक लाल और आनन्द प्रकाश शर्मा का योगदान नाटक को सफल बनाने में महत्वपूर्ण साबित हुआ।

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