लखनऊ । केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ परिसर में संस्कृत दिवस समारोह आरम्भ हुआ। समारोह की अध्यक्षता करते हुए लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा ने कहा कि प्रतिवर्ष संस्कृत की प्रायः संस्थाएं यह संकल्प लेती हैं कि संस्कृत संस्थानों में अध्ययन, अध्यापन, परीक्षा आदि संस्कृत माध्यम से हों।
परीक्षाएं संस्कृत माध्मय से होती भी हैं, अध्यापन में भी संस्कृत माध्यम का प्रावधान है और होता भी है, लेकिन परिणाम उस प्रकार का नहीं दिखता है जो दिखना चाहिए। यह एक चिन्ता का विषय है। अध्यापक विद्वान् हैं, छात्र जिज्ञासु हैं, संस्कृत माध्यम से पढ़ने-पढ़ाने और परीक्षा लिखने का नियम भी है, फिर भी संस्कृत संस्थाओं के अध्यापक और छात्र संस्कृत में व्यवहार कर इस तरह का वातावरण निर्माण नहीं कर पा रहे हैं, जिससे संस्कृत संस्थाओं में पढ़ने वाले छात्रों में से 50 प्रतिशत भी संस्कृत बोल सकें। बहुत सारे अध्यापक भी संस्कृत नहीं बोल पा रहे हैं, इसलिए केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय को दृढ़तापूर्वक इस विषय का पालन करना चाहिए।
उक्त अवसर पर कुछ छात्रों ने अद्भुत प्रदर्शन किए, जिनमें आयुष मिश्र, तुषार कुमार मिश्र और हेमनन्दन आदि प्रमुख थे। पूरे वर्ष की कार्ययोजना बनाने हेतु आचार्यों से आग्रह किया गया और इस वर्ष को एक उदाहरण के तौर पर पूरे भारतवर्ष के पटल पर संस्कृतमय वातावरण बनाने हेतु अध्यापकों एवं छात्रों का आवहन किया गया।
स्वागत करते हुए प्रो. पवन कुमार ने परिसर के कार्यपद्धति, छात्रों की विलक्षणता और आचार्यों के वैदुष्य पर प्रकाश डाला और संतोष व्यक्त किया। सारस्वत भाषण में प्रो. मदनमोहन पाठक जी ने देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप संस्कृत वाङ्मय को ढालने का प्रयत्न करने के लिए छात्रों का आवाहन किया।
संचालन करते हुए व्याकरणशास्त्र के आचार्य प्रो. भारतभूषण त्रिपाठी ने आज के युग में संस्कृत की प्रासंगिकता पर बल दिया और संस्कृतमय वतावरण बनाने के लिए छात्रों और आचार्यों का आवाहन किया। अन्त में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए प्रो. धनीन्द्र कुमार झा ने कहा कि संस्कृत रूप परिवर्तन के साथ भी उतनी ही उपादेय है जितना पहले थी। छात्रों की स्पर्धाएं इस समय चल ही रहीं हैं। इसके परिणाम की घोषणा समापन के दिन की जायगी।