धीरेन्द्र श्रीवास्तव ब्यूरो चीफ सीतापुर
नैमिषारण्य (सीतापुर) भागवत कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है, कलयुग में मानस पुण्य तो सिद्ध होते हैं, परंतु मानस पाप नहीं होते, कलयुग में हरी नाम से ही जीव का कल्याण हो जाता है कलयुग में ईश्वर का नाम ही काफी है सच्चे हृदय से हरि नाम के सुमिरन मात्र से कल्याण संभव है कठिन तपस्या और यज्ञ आदि करने की आवश्यकता नहीं है। जबकि सतयुग, द्वापर और त्रेता युग में ऐसा नहीं था ये बातें तीर्थ स्थित प्रसिद्ध कालीपीठ संस्थान में कालीपीठाधीश गोपाल शास्त्री के सानिध्य में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में बड़ौदा गुजरात से पधारे कथा व्यास प्रदीप भाई शास्त्री ने कहीं।
कथा व्यास ने भागवत कथा के प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए भगवान श्री कृष्ण की विभिन्न बाल लीलाओं और रासलीला का भावपूर्ण वर्णन किया, कथा सुनाते हुये व्यास जी ने भगवान श्री कृष्ण की मनोरम झांकी का अवलोकन कराया पूतना वध, यशोदा मां के साथ बालपन की शरारतें, भगवान श्रीकृष्ण का गो प्रेम, कालिया नाग मान मर्दन, माखन चोरी गोपियों का प्रसंग सहित अन्य कई प्रसंगों का कथा के दौरान वर्णन किया। कंस का आमंत्रण मिलने के बाद भगवान श्री कृष्ण बड़े भाई बलराम जी के साथ मथुरा को प्रस्थान करते हैं। श्रीमद् भागवत कथा के दौरान कथा व्यास द्वारा बीच-बीच में सुनाए गए भजन पर श्रोता भाव विभोर हो गए।
जीवन में भगवान की भक्ति जाग्रत हो जाती है। संसार में चारो और मोह माया व्याप्त है जिसमें मानव फंस कर अपने अमूल्य जीवन को नष्ट कर रहा है। जबकि मनुष्य का शरीर अनेक जन्मों के पुण्यों के फल स्वरुप प्राप्त हुआ है। जिसका उद्देश्य संसार में परमात्मा के चरणों का आश्रय लेकर सदाचारी रुप से जीवन यापन करके मोक्ष प्राप्त करना चाहिए, लेकिन भटकाव के कारण मानव इस संसार को नित्य मान लेता है। जबकि परमात्मा ही इसके मूल में सत्य रूप में विराजमान है। उनकी भक्ति का प्रादुर्भाव हम सभी को भागवत श्रवण से प्राप्त होता है।
कथा विश्राम के समय आरती एवं प्रसाद वितरण किया इस दौरान कालीपीठ मंदिर के संचालक भाष्कर शास्त्री, पंडित धीरज शास्त्री समेत गुजरात से आये श्रद्धालु भक्त मौजूद रहे।