धीरेन्द्र श्रीवास्तव ब्यूरोचीफ सीतापुर
नैमिषारण्य, सीतापुर। शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर नैमिषारण्य के कालीपीठ मे स्थित माता धूमावती के दर्शन नवरात्रि के अवसर पर इस बार भक्तों को एक बार ही होंगे चूंकि इस बार शारदीय नवरात्रि में एक ही शनिवार पड रहा है अतः भक्तों को माता के दर्शन का लाभ 1 अक्टूबर को ही मिलेगा इस बात की जानकारी ललिता देवी के प्रधान पुजारी एवं कालीपीठाधीश गोपाल शास्त्री ने दी।
उन्होने बताया कि कालीपीठ मंदिर के संस्थापक ब्रह्मलीन पं0 जगदंबा प्रसाद जी के द्वारा माता धूमावती की स्थापना की गयी थी, वे सिद्धपीठ दतिया से शिक्षा प्राप्त किये थे, नवरात्रि के दौरान कालीपीठ मंदिर में विशेष अनुष्ठान एवं पूजन का क्रम निरंतर चलता रहता है।
उन्होने बताया कि नवरात्रि में पड़ने वाले शनिवार के अलावा अन्य दिनों में माता धूमावती के दर्शन सम्भव नहीं हैं। प्रधान पुजारी ने बताया कि दस महाविद्याओं में उग्र देवी धूमावती का स्वरूप विधवा का है। कौवा इनका वाहन है। वह श्वेत वस्त्र धारण किये हुये हैं। खुले केस उनका रूप और विकराल बनाते हैं।
पुजारी ने बताया कि माँ का स्वरूप कितना ही उग्र क्यों न हो संतान के लिये वह हमेंशा कल्याण कारी होता है। छह माह में नवरात्रि के अवसर पर ही उनके दर्शन किये जाते हैं। दनके दर्शन कर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। शनिवार को काले कपडे़ में काले तिल मां के चरणों में भेंट किये जाते हैं। मान्यता है कि सुहागिने माता के दर्शन नहीं करती हैं। ऐसा देवी के वैधव्य रूप के कारण है। वस्तुतः उनके इस रूप का कारण अलग है। मां धूमावती अपनी क्षुधा शांत करने के लिये भगवान शंकर के पास गयीं उस समय वह समाधि में लीन थे माता के बार-बार निवेदन पर भी उनका ध्यान उस ओर नहीं गया फलस्वरूप देवी ने उग्र होकर भगवान शिव को निगल लिया। भगवान शंकर के गले में विश होने के कारण माँ के शरीर से धुआ निकलने लगा। इसी कारण उनका नाम धूमावती पड़ा।