तीसरा उर्मिल रंग उत्सवः पहली शाम
सम्मानित हुये डा.रस्तोगी, विजय वास्तव व कलाकार
लखनऊ, 16 जुलाई। दिग्गज अभिनेता डा.अनिल रस्तोगी, विजय वास्तव व अन्य कलाकारों के सम्मान के साथ तीसरा उर्मिल रंग उत्सव संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह में आज से प्रारम्भ हो गया। डा.उर्मिलकुमार थपलियाल फाउण्डेशन पांच दिन तक चलने वाले नौटंकी विधा पर केन्द्रित समारोह का आगाज 40 साल पहले डा.थपलियाल के संगीत, लेखन व निर्देशन में रचित नौटंकी हरिश्चन्नर की लड़ाई के रितुन थपलियाल मिश्रा द्वारा मंच पर उतारे पुनर्प्रयास के साथ हुआ। उत्सव का उद्घाटन उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने किया।
अवधी व बृज भाषा के संग हाथरसी और कानपुर नौटंकी शैली की मिली जुली यह प्रस्तुति अतीत के आदर्शों की समसामयिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है। इसमें सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की ’लड़ाई’ के कुछ अंश लेकर उसे मास्टर हरिया के जीवन से सहज और सार्थक सम्बन्ध जोड़ने की कोशिश की गयी। देवी के सामने केवल राजा हरिश्चन्द्र के अभिनय के दौरान नहीं बल्कि जीवन में सच बोलने का खतरा मोल लेने का वचन देकर मास्टर हरिया ने न केवल पौराणिक आदर्शों बल्कि आज ’सच्चाई’ की कीमत का मोल आंका है। निर्देशक का प्रयत्न रहा कि नौटंकी का संस्कार न बदले और उसमें आधुनिक रंगशिल्प का घालमेल न हो सके। निर्देशक का मानना रहा है कि आजकल लोकनाट्यों में जिस ’क्रूडनेस’ को प्रामाणिकता मान लेने का चलन है, उसके लिये शहर के अभिजात्य दर्शक साक्षात व्यवधान हैं। नौटंकी पुरोधा नत्थाराम शर्मा गौड़ व उस्ताद इन्दर मन रचित ’सत्य हरिश्चन्द्र’ उर्फ ’गुलशन का नाग’ के साथ धूमिल व दुष्यन्त कुमार की रचनाओं के कुछ अंश भी इसमें हैं। नाटक में दिखाया गया है कि सच बोलकर परम पद पाने वाले राजा हरिश्चन्द्र की भूमिका निभाने वाला ’हरिया’ अगर आज ’सच’ बोलेगा तो उसे अपने समाज से, परिवार से, अस्तित्व के कैसे खतरे उठाने को मजबूर होना पड़ेगा।
थपलियाल की डिज़ाइन को यथारूप उतारने के प्रयत्न करते हुए रितुन ने प्रस्तुति के खासकर गायकी पक्ष में अश्विनी मीता पंत का सहयोग लिया। नौटंकी में रंग युगल कबीर पांडे व गौतम रॉय थे तो नटमंडल में अनुश्री जैसल, ओमकार, विमलेश, प्रखर, आयुष, सूरज, सिकंदर व राजवीर शामिल थे। मास्टर हरिया व हरिचन्नर की मुख्य भूमिका में पवन कुमार जैसल के साथ पत्नी व तारामती- मीता पंत, ठेकेदार- वीरेंद्र रस्तोगी, रोहिताश्व व रोहित- कनुश्री जैसल, देवी व बुद्धिजीवी- रितुन, मैनेजर-सागर सिंह, करकट व राशन बाबू- प्रखर द्विवेदी, दमनक व पत्रकार- आयुष श्रीवास्तव, आदिवासी एक व चपरासी- ओमकार पुष्कर, आदिवासी दो- विमलेश कुमार, इंद्र व कमिश्नर- आर्यन शुक्ला, विश्वामित्र- अभिजीत कुमार सिंह, माली व प्रिंसिपल- सत्येंद्र मिश्रा, नेता-ऋषभ पाण्डेय, दरोगा- दुर्गा प्रताप सिंह, संपादक- सिकंदर यादव, विष्णु- प्रतीक कुमार तिवारी, मालन व संस्कृति- प्रख्याति जायसवाल, दलित 1- प्रखर, दलित 2- सूरज बने।
मंच पार्श्व के पक्षों में संगीत- मीता पंत, कबीर पांडे, हर्षिता आर्या, नक्कारा- मो.सिद्दीक, हारमोनियम- इलियास खान, ढोलक- मुन्ना खान, सेट- मधुसूदन, रंगदीपन- गोपाल सिन्हा का रहा। साथ ही मनीष सैनी, मनोज वर्मा, रोजी मिश्रा, ओमकार, आयुष, सूरज व सागर सिंह का सहयोग रहा। लेखन में डा. थपलियाल को अशोक बनर्जी से भी सहयोग व प्रेरणा मिली थी।
सम्मानित हुये कलाकार
अतिथियों उपमुख्यमंत्री व मुकेश बहादुर सिंह ने जहां वरिष्ठ अभिनेता डा.अनिल रस्तोगी व विजय वास्तव को उर्मिल रंग सम्मान से अलंकृत किया, वही इस अवसर पर 1984 में इस नौटंकी में काम करने वाले कलाकारों राकेश अग्निहोत्री, देवेश अग्निहोत्री, भूपेंद्र सिंह, राजीव प्रभाकर अवस्थी, शिवाजी आवारा वीरेंद्र रस्तोगी, अश्विनी मक्खन, शोभना जगदीश, रितुन, मनोज जोशी, रूप राज नागर, तूलिका गुप्ता, कविता सोलंकी, विनीता सोलंकी, मधुसूदन व अशोक बनर्जी को भी सम्मानित किया गया। डा.थपलियाल के जन्मदिन पर शुरू हुये उत्सव में उनके साथ रंगकर्मी पीयूष पांडे को भी श्रद्धांजलि दी गयी। लोगों का स्वागत वीना थपलियाल व सत्येन्द्र मिश्र ने किया। उत्सव के दूसरे दिन 17 जुलाई को द्वारिका लोकनाट्य कला उत्थान समिति कौशांबी के कलाकार संतोषकुमार के निर्देशन में नौटंकी ‘केवट के राम’ का मंचन करेंगे।