Home न्यूज टैगोर की कहानी को लेकर रंग कलाकारों ने बताया ‘मुक्ति का उपाय’

टैगोर की कहानी को लेकर रंग कलाकारों ने बताया ‘मुक्ति का उपाय’

146
0

संत गाडगे प्रेक्षागृह में पांच दिवसीय उर्मिल रंग उत्सव की तीसरी शाम
हंस-हंस कर जाना गृहस्थ की मुक्ति दायित्वों से होगी

लखनऊ, 18 जुलाई। रवीन्द्रनाथ टैगोर की बहुत ही दिलचस्प और सामाजिक संदेश देने वाली कहानी ‘मुक्ति का उपाय’ का डा.उर्मिल कुमार थपलियाल द्वारा किया नाट्य रूपांतर का इसी शीर्षक से पुनर्मंचन आज यहां संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह में उर्मिल रंग उत्सव की तीसरी शाम रंगयात्रा के कलाकारों ने किया और रंगप्रेमियों को हंसाया भी। चौथी शाम उत्सव के तहत मंचकृति की एक और गुदगुदाती प्रस्तुति ‘साहब-मेमसाहब’ मंच पर होगी।
डा.उर्मिल कुमार थपलियाल फाउण्डेशन के इस उत्सव में आज की प्रस्तुति संदेश देती है कि आम गृहस्थ के लिए मुक्ति का उपाय अपने पारिवारिक और सामाजिक जीवन में दायित्वों का भली प्रकार निर्वाह करने मात्र से ही है, कर्तव्यों से भागकर संन्यासी बनने से नहीं। साथ ही यह पुत्र-पुत्री एक समान हैं, यह पैगाम भी पहुंचाता है। गुरुवर की रोचक कथा में हूबहू हुलिए और शक्ल वाले दो हमउम्र किरदार माखनलाल और फकीरचंद हैं। धर्मिक प्रवत्ति के फकीरचंद की अपेक्षाकृत काफी कमउम्र पत्नी अपनी उम्र के अनुसार जीवन का आनंद चाहती है। उनमें रोज तकरार होती है। तंग फकीरचंद मुक्ति का उपाय खोजने के लिए घर छोड़कर प्रवाचक बन जाता है। दूसरा माखनलाल के पहली पत्नी से तीन पुत्रियां होने से परिवार के दबाव में दूसरी शादी कर चार और लड़कियों का बाप बन जाता है। मज़े की बात है कि उसे पुत्र प्राप्ति पहली पत्नी से ही होती है। इसपर भी माखनलाल भी अपने पारिवारिक जीवन से परेशान होकर घर छोड़ देता है। इस दौरान यायावर फकीरचंद माखनलाल के गांव में आकर प्रवचन देने आता है तो गांव वाले उसे माखनलाल समझकर जबरन उसके घर पहुंच देते हैं। परिवार भी उसे माखन मान लेता है पर फकीरचंद कहता है- ये मेरी पत्नियां नहीं मेरी माता हैं, की वो संन्यासी है। इसपर मचे हंगामें के पत्नियां के अपने भाई-बहन बुलाकर समझाने और मुहल्ले वालों की मार खाने पर भी फकीरचंद अपने आप को माखनलाल होना क़ुबूल नहीं करता। तब बुलाया वकील मश्विरा देता है कि अगर कोई बहरी व्यक्ति इसे साबित कर दे कि ये माखनलाल है तो बात बन जायेगी। अब माखनलाल को पैदा करवाने वाली दाई बुआ आती हैं। पैसो के लालच में दाई बुआ फकीरचंद को माखनलाल घोषित कर देती हैं। आखिर हैरान फकीरचंद फ़ोन करके अपने असली पिता और पत्नी को बुलाता है और वे उसके फकीरचंद होने की तस्दीक करते हैं। इसी बीच माखनलाल घर लौटता है। सब जानकर अपनी पत्नियां को लानत भेज़ता है कि वे पति को भी नहीं पहचान सकीं। अंत में माखन और फकीरचंद सबके सामने मानते हैं कि मुक्ति का उपाय बाहर या जंगल में ढूढ़ने से नहीं, उन जैसों को तो हंसी-खुशी आपने परिवार में ही मिलेगा। 125वीं टैगोर जयंती के अवसर पर तैयार इस नाट्य रूपांतरण को प्रस्तुति के निर्देशक ज्ञानेश्वर मिश्र ज्ञानी के निर्देशन में तैयार कराने में भी डा.थपलियाल की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
मंच पर फकीरचंद की भूमिका में निर्देशक ज्ञानेश्वर के संग माखनलाल- मधु प्रकाश श्रीवास्तव, हेमवती- अंशिका सक्सेना, भाई-मनीष पाल, बहन-सोनल, वकील-आशीष सिंह राजपूत, दाई बुआ-अमिय रानी सिंह, पिता-निखिल सिंह, छठीलाल-सूरज गौतम, पहली पत्नी-रंजीता सिंह, दूसरी पत्नी-अन्तरा गुप्ता और ग्रामीणों के रूप में अरुणेश मिश्रा, पवन कुमार, दिनेश सिंह, निस्वार्थ जायसवाल व सुमित इत्यादि उतरे। नेपथ्य में प्रकाश-तमाल बोस, मुखसज्जा-राजकिशोर गुप्ता पप्पू,
संगीत संयोजन-राहुल शर्मा, वेशभूषा-संहिता मिश्रा, प्रियंका भारती, मंच निर्माण-शिव रतन व प्रस्तुति सहयोग-आरती निगम व अनामिका तिवारी के हाथ रहा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here